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लेखक :--- योगाचार्य डॉक्टर प्रवीण कुमार शास्त्री
मानव जीवन परिश्रम करने के लिए ही मिला है । परिश्रम अर्थात् कर्म करना । कर्म करके ही व्यक्ति महान् बनता है । कर्म करके ही व्यक्ति मोक्ष की ओर बढ़ता है । जो व्यक्ति कर्म नहीं करता, परिश्रम नहीं करता, उसका जीवन निम्न गति का हो जाता है । ऐसे मनुष्यों को परमात्मा कर्म करने के लिए दूसरी योनियाॅ प्रदान करते हैं । जो व्यक्ति मानव जीवन में आरामतलबी हो जाता है, आलसी हो जाता है, परिश्रमहीन हो जाता है । ऐसे व्यक्तियों को अगले जन्म में गधा, बैल, भैंसा या ऐसी योनि देते हैं, जिसमें बहुत अधिक परिश्रम करना पड़े ।इसलिए परिश्रम से हमें कभी अलग नहीं होना चाहिए । लेखक :--- योगाचार्य डॉक्टर प्रवीण कुमार शास्त्री
वैसे भी यह शरीर हम सब को निःशुल्क मिला है । हमने इसके लिए कोई मूल्य नहीं चुकाया है । परमात्मा की दी हुई रचना है । तो इस शरीर से बहुत मेहनत करवानी चाहिए । हां, इसकी रक्षा करनी आवश्यक है । इसकी वृद्धि करनी आवश्यक है । किंतु फ्री का माल है इसलिए शरीर से बहुत मेहनत करवानी चाहिए । लेखक :--- योगाचार्य डॉक्टर प्रवीण कुमार शास्त्री
महान् नीतिकार महात्मा विदुर ने कहा है कि गरीब होकर जो मेहनत न करें, उसे बहुत बड़ी सजा देनी चाहिए :--
द्वौ अम्भसि निवेष्टव्यौ गले बद्ध्वा दृढां शिलाम् ।
धनवन्तम् अदातारम् दरिद्रं च अतपस्विनम् ॥
दो प्रकार के लोग होते हैं, जिनके गले में पत्थर बांधकर उन्हें समुद्र में फेंक देना चाहिए. पहला, वह व्यक्ति जो अमीर होते हुए दान न करता हो. दूसरा, वह व्यक्ति जो गरीब होते हुए कठिन परिश्रम नहीं करता हो । लेखक :--- योगाचार्य डॉक्टर प्रवीण कुमार शास्त्री
त्यजन्ति मित्राणि धनैर्विहीनं पुत्राश्च दाराश्च सहृज्जनाश्च ।
तमर्थवन्तं पुनराश्रयन्ति अर्थो हि लोके मनुष्यस्य बन्धुः ॥
मित्र, बच्चे, पत्नी और सभी सगे-सम्बन्धी उस व्यक्ति को छोड़ देते हैं जिस व्यक्ति के पास धन नहीं होता है । फिर वही सभी लोग उसी व्यक्ति के पास वापस आ जाते हैं, जब वह व्यक्ति धनवान् हो जाता है । धन हीं इस संसार में व्यक्ति का मित्र होता है । लेखक :--- योगाचार्य डॉक्टर प्रवीण कुमार शास्त्री
यस्तु सञ्चरते देशान् सेवते यस्तु पण्डितान् ।
तस्य विस्तारिता बुद्धिस्तैलबिन्दुरिवाम्भसि ॥
वह व्यक्ति जो विभिन्न देशों में घूमता है और विद्वानों की सेवा करता है । उस व्यक्ति की बुद्धि का विस्तार उसी तरह होता है, जैसे तेल का बूॅद पानी में गिरने के बाद फैल जाती है । लेखक :--- योगाचार्य डॉक्टर प्रवीण कुमार शास्त्री
जिस व्यक्ति के पास कोई कला नहीं होती,उसे कोई नहीं चाहता ।
येषां न विद्या न तपो न दानं ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः।
ते मर्त्यलोके भुविभारभूता मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति ॥
जिन लोगों के पास न तो विद्या है, न तप, न दान, न शील, न गुण और न धर्म । वे लोग इस पृथ्वी पर भार हैं और मनुष्य के रूप में जानवर की तरह से घूमते रहते हैं । लेखक :--- योगाचार्य डॉक्टर प्रवीण कुमार शास्त्री
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कार्यार्थी भजते लोकं यावत्कार्य न सिद्धति ।
उत्तीर्णे च परे पारे नौकायां किं प्रयोजनम् ॥
जबतक काम पूरे नहीं होते हैं, तबतक लोग दूसरों की प्रशंसा करते हैं. काम पूरा होने के बाद लोग दूसरे व्यक्ति को भूल जाते हैं. ठीक उसी तरह जैसे, नदी पार करने के बाद नाव का कोई उपयोग नहीं रह जाता है । लेखक :--- योगाचार्य डॉक्टर प्रवीण कुमार शास्त्री
कुछ लोग परिश्रम तो करना नहीं चाहते हैं, लेकिन सफल होना चाहते हैं । विश्व में बहुत महान् होना चाहते हैं । प्रसिद्ध होना चाहते हैं । ऐसे व्यक्ति केवल काल्पनिक होते हैं । आकाश के पुष्प की तरह होते हैं । उन्हें सफलता कभी नहीं मिल सकती ।